देवउठनी एकादशी 2025 में कब है? जानिए देवों के जागने की शुभ तिथि और शुभ मुहूर्त,पूजा विधि !
देवउठनी एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) क्या है?
देवउठनी एकादशी जिसे प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी, हरिबोधिनी एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है। यह हिंदू पंचांग की एक महत्वपूर्ण तिथि है। इसका अर्थ है , वह दिन जब देवता (विशेषकर भगवान विष्णु) चार महीने के ‘शय्या निद्रा / योग निद्रा’ से जागते हैं। इस दिन से विवाह, गृह प्रवेश, शुभकार्य आदि शुभ माना जाता है क्योंकि चातुर्मास (चार महीने की अवधि जब देवता विश्राम में हों) समाप्त हो जाती है। आज ओमांश एस्ट्रोलॉजी अपने इस लेख में देवउठनी एकादशी कब है पूजा विधि और शुभ मुहूर्त की जानकारी लेकर प्रस्तुत है!
#देवउठनी एकादशी 2025 — तिथि एवं मुहूर्त:
#2025 में देवउठनी एकादशी निम्न तिथि-विवरण के अनुसार है:
*एकादशी तिथि प्रारंभ: 1 नवंबर 2025, शनिवार सुबह 9:11 बजे से आरम्भ होगी!
*एकादशी तिथि समाप्ति: 2 नवंबर 2025, रविवार सुबह 7:31 बजे तक रहेगा!
*पारण समय (व्रत खोलने का मुहूर्त): 2 नवंबर, रविवार शाम 6:34 बजे से 8:46 बजे तक रहेगा!
ध्यान दें कि ये समय ग्रेगोरियन कैलेंडर तथा हिन्दू पञ्चांग के अनुसार हैं, स्थान विशेष (जैसे कि आपका शहर) में थोड़ी बदल-परिवर्तन हो सकती है।
देवउठनी एकादशी का हिन्दू परंपरा में गहरा धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व है। नीचे इसके प्रमुख पहलुओं का वर्णन किया गया है:
1. चातुर्मास का अंत:
हिन्दू धर्म में आषाढ़ शुक्ल एकादशी से देवशयनी एकादशी (या आषाढ़ महीने में) से देवता चार महीने योग निद्रा में माने जाते हैं — इस बीच इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। इस अवधि में विवाह, गृह प्रवेश, अन्य बड़े शुभकार्य टाल दिए जाते हैं।
देवउठनी एकादशी वह तिथि है जब देवता जागते हैं, इसलिए सभी शुभ कार्य पुनः प्रारंभ होते हैं।
2. विवाह मौसम की शुरुआत:
इस दिन से विवाह, सगाई, गृह प्रवेश इत्यादि सामाजिक एवं पारिवारिक समारोहों के लिए शुभ मुहूर्त शुरू हो जाते हैं। लोग इस दिन विशेष आयोजन करते हैं।
3. पूजा-विधि एवं भक्ति:
भगवान विष्णु की आराधना, स्तोत्र-स्तोत्रों और विष्णु सहस्रनाम आदि पाठ की जाती है। तुलसी विवाह की परंपरा भी इस दिन प्रचलित है — तुलसी का विवाह शिव / विष्णु / तुलसी (स्थानीय रीति अनुसार) संपन्न किया जाता है।
4. आध्यात्मिक शुद्धि एवं पापों का नाश:
व्रत, पूजा, दान, सत्कर्म आदि द्वारा मनुष्य अपने पुराने पापों से मुक्ति पा सकता है, आत्मा की शांति हो सकती है। जीवात्मा पर संस्कार होते हैं, आध्यात्मिक चेतना बढ़ती है।
5. परिवार और सामाजिक समरसता:
इस दिन परिवार और समाज के बीच मेलजोल, उत्साह और सामूहिक पूजा-संस्कार होते हैं। लोग अपने सम्बन्धों में सुधार, श्रद्धा और भक्ति से घर को पूजा-स्थल बनाते हैं।
**पूजा-विधि, उपाए और नियम:
देवउठनी एकादशी के अवसर पर शाम, सुबह, दिन के कई महत्वपूर्ण नियम और पूजा-क्रम होते हैं। नीचे विस्तृत विवरण है:
1. व्रत की तैयारी
*एकादशी से एक दिन पहले (यानि 31 अक्टूबर की शाम) से ही हल्का, शुद्ध, सात्विक आहार लिया जाना चाहिए।
*तीखे, मांसाहारी, अस्थिर आहार, लहसुन प्याज आदि से परहेज करना शुभ माना जाता है।
*व्रतकर्ता को नित्य स्नान करना, शुद्ध वस्त्र पहनना चाहिए। पूजा-स्थल की सफाई करना भी आवश्यक है।
2. पूजा सामग्री
*भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र
*तुलसी का पौधा या तुलसी पत्ते
*पंचामृत (दूध, दही, घृत, शहद, चीनी)
*फूल, दीपक, अगरबत्ती
*अक्षत (चावल), हल्दी, चंदन
*फल, मिठाई, तिल, दान की वस्तुएँ
3. पूजा क्रम (विधि)
सुबह समय रहते उठें, स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
पूजा स्थान को साफ करें। तुलसी का विशेष स्थान दें। तुलसी विवाह की रस्म कर सकते हैं यदि यह प्रचलित है।
भगवान विष्णु की आरती और भजन-कीर्तन करें। विष्णु सहस्रनाम, विष्णु स्तोत्र आदि का पाठ करें।
दान करें — दीनों को भोजन, वस्त्र, पैसे आदि जो हो सके। छत्र, भोजन आदि देना शुभ माना जाता है।
4. व्रत का पालन
व्रत पूरी तरह अप्रातः कालीन (सुबह) से शुरू करें। एकादशी की तिथि शुरू होते ही व्रत की अवधि प्रारंभ समझी जाती है।
व्रत के दौरान कुछ लोग निर्जल व्रत रखते हैं (केवल पानी या फलाहार), कुछ हल्का आहार लेते हैं — स्वास्थ्य की स्थिति के अनुसार चुनाव किया जा सकता है।
व्रत खोलने (पारण)का समय निर्धारित है: 2 नवंबर, शाम 6:34 बजे से 8:46 बजे के बीच। इस समय के बाद ही व्रत तोड़ना चाहिए।
5. विशेष उपाएँ
*तुलसी विवाह करना (यदि पारंपरिक रीति अनुसार) शुभ माना जाता है।
*पूजा के बाद विशेष मंत्रों, स्तोत्रों का पाठ करना — विष्णु सहस्रनाम, आदि।
*स्नान, शुद्धता, मन-भाव से पूजा करना चाहिए; विश्वास के अनुसार, मन यदि निर्मल हो तो पूजा अधिक फलदायी होती है।
पञ्चांग के अनुसार, देवउठनी एकादशी कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी में आती है। हिन्दू कैलेंडर में कार्तिक शुक्ल पक्ष वह समय है जब चंद्रमा पूर्णिमा की ओर बढ़ रहा हो।
*समय निर्धारण इस प्रकार है:
एकादशी तिथि जब शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि प्रारंभ होती है और अगले दिन उस तिथि की समाप्ति होती है। इस अवधि के भीतर उपवास आदि क्रियाएँ की जाती हैं।
पराना समय (व्रत खोलने का उत्तम समय) Dwadashi तिथि शुरू होने के बाद निर्धारित होता है, लेकिन Hari Vasara जैसे कुछ अस्थायी अंशों का ध्यान रखना चाहिए यदि शास्त्रों में उल्लिखित हो।
**क्यों माना जाता है कि यह व्रत और पूजा खास हैं? कथा और मान्यताएँ:
पूरी तरह से विश्वासों और पुराणों में उपस्थित कथाएँ इस प्रकार हैं!
माना जाता है कि देवता विशेष रूप से विष्णु, चार महीने ‘देवशयनी एकादशी’ से योग निद्रा में रहते हैं। इस अवधि में देवी-देवताओं का विश्राम होता है, उनका जागरण नहीं माना जाता।
देवउठनी एकादशी पर, जब देव जागते हैं, तो संसार में पुनः सक्रियता होती है , धर्म, शुभ कार्य, विवाह इत्यादि ने शुरुआत होती है। इसलिए इस दिन की पूजा-विधि विशेष होती है।
विश्वास है कि इस व्रत से पितृ दोष निवारण, परिवार में सौहार्द बढ़ना, जीवन में समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
देवउठनी एकादशी न केवल धार्मिक कर्मों का दिन है, बल्कि आध्यात्मिक चेतना की जागृति और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का अवसर है। चार महीने के निष्क्रिय और शांत काल के बाद यह दिन बताता है कि जीवन में उत्साह, सौभाग्य और शुभता लौट रही है। यदि उपरोक्त मुहूर्तों और नियमों का
पालन श्रद्धा और आस्था से किया जाए, तो यह व्रत एवं पूजा व्यक्ति के मन, परिवार और समाज में सकारात्मक परिवर्तन का माध्यम बन सकती है।